Monday, July 30, 2007

कहॉ है हमारा हरिया पाटर


प्रेम चन्द


हैरी पाटर ने बिक्री के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। उसका जादू कुछ इस क़दर चला है कि बच्चे, बूढ़े सभी इसके दीवाने हुए जा रहे हैं। जो नहीं हो रहे हैं वे इसके बारे में चर्चा करते नहीं अघा रहे हैं। ये सब दुनिया के लिए भले ही गर्व का विषय हो, पर हमारे लिए तो यह सोचने का है।हमारे जेहन में बार बार यही सवाल आ रहा है कि कहॉ है हमारा हरिया पाटर। हॉल ही में एक सर्वेक्षण में सामने आया कि विश्व में भारतीय लोग बडे ही अध्ययनशील होते हैं। फिर हमारे यहाँ किताबों कि बिक्री क्यों इतने जोर शोर से क्यों नहीं होती। हम तो अपनी एक एक किताबों की बिक्री के लिए तरसते हैं। इसके बाद भी अध्ययनशील होने का तमगा हमारे ही पास है। वैसे देखा जाये तो इसमे कुछ भी गलत नहीं है। हैरी पाटर कि होड़ में भारत भी पीछे नहीं रहा। हमारे यहाँ भी पहले ही दिन एक लाख ७० हज़ार पुस्तकें बिक गईं। जो रिकार्ड है।यह बड़ा ही मासूम सा सवाल है कि फंतासी कि दुनिया में जीने वाले भारतीय फंतासी का फन्डा क्यों नहीं समझ पा रहे हैं। समृद्ध साहित्य के लिए जाना जाने वाला भारत पाठकों में दीवानगी क्यों नहीं पैदा कर पा रहा है। सिर्फ दीवानगी कि ही करें तो योरोपीय लोगों के आगे हम कहीँ नहीं ठहरते। लंबी लंबी लाइनों को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि हमें इनसे सीख लेनी चाहिए। कम से कम नक़ल तो कर ही सकते हैं। वह भी क्यों नहीं। हम लोग योरोपीय लोगों कि हर बात मे नक़ल करते देखे जाते हैं। हमरा पहनावा, खाने, बोलने का ढंग, सब कुछ तो नक़ल पर टिका है। फिर उनकी पठनीयता कि नक़ल क्यों नहीं कर सकते हैं। क्या नक़ल करने में भी हम पिछड़ रहे हैं। रचनात्मकता कि बात करें तो हमारे यहां इसकी कमी नहीं है। फिर हमारे यहाँ कहॉ कमी रह जाती है, इस पर में से विचार करना चाहिए। रचनात्मकता ही नहीं मार्केटिंग में भी उनसे हमें सीखना चाहिए। हैरी पाटर न सही, भारत में भी एक हरिया पाटर क्यों नहीं पैदा हो सकता है।

4 comments:

Satyendra PS said...

Guru, Kya baat kahi hai. Lage rah kissagoi me.
satyendra

bhupendra said...
This comment has been removed by the author.
Prem said...

It is good. we should also aware for our social responsibility.

om kabir

satyendra said...

kuch naya likho yar , kahe khamosh ho gaye