Sunday, August 26, 2007

अजब है बूढ़े


भूपेंद्र सिंह

अजब है दिल्ली के बूढ़े, अजब है इनके रंग,
कोई भाग रहा लड़कियों के पीछे, तो किसी को चाहिऐ पैसा, व्हिस्की और रम।
कौन कहता है कि बुढ़ापा रंगीन नही होता। दिल्ली के बूढ़े को देखिए रंगीनिया ही रंगीनिया नजर आएगी। रंगीले ऐसे कि दिल्ली के नए लड़को को भी पीछे कर दे। दिल्ली के बूढ़े के रंग देखना चाहते है तो दिल्ली की बस मे सफ़र कीजिये। यकीं मानिये सफ़र बढिया कटेगा। लड़कियों के बस मे चढ़ते ही बूढ़े सक्रिय हो जाते है। किसी को यह फिक्र नही होती कि उसे सीट मिली है कि नही लेकिन लड़कियों को सीट दिलाने मे कोई कसर नही रखते। सबसे गुहार लगते फिरेंगे कि कोई तो बेचारी लडकी को सीट दे दो। कई बूढ़े तो अपनी सीट मे थोड़ी सी जगह दे देते है ओर ख़ूब मजे लेते है। रंगीन बूढ़े सबसे ज्यादा लेडीज़ सीट के पास खडे रहते है। वही से खूबसूरत परियों के दर्शन करते है। कोई शक भी नही करता। बुढ़ापा जैसा सशक्त हथियार जो पास मे है। किसी लडकी ने अगर कुछ बोला तो उसे बेटी कह देते है। बस लडकी का शक दूर। और बूढ़े भरपूर। ऑफिस मे तो इन बूढ़े के मजे ही मजे रहते है। केबिन मे बुलाकर ख़ूब मजे लूटते है। उधर जवान लड़के हसरत भरी नज़रों से देखते रहते है कि कब बूढ़े छोडे और कब पासा फेककर अपनी तरफ मोडे। ऑफिस कि परिया तो इन बूढ़े के पास नजर आती है। बेचारे जवान ये सोचकर मन मार लेते है के कभी तो अपना समय आएगा। every dog has his day my day will also come.

3 comments:

Prem said...

kya khub guru. per tum bhi to ek din yahi maze lutoge, phir kaisa mahsus karoge. kya tumhare man me laddu nahin futenge.

Unknown said...

satish singh.

dost kya khoob kahi. sachmuch ye ghatna ek baar bus main jate waqt maine dekhi. woh buddha us ladki se chipakta ja raha tha. or ladki dur hatti ja rahi thee. aakhir me ladki ko raha nahi gaya. or usne buddhe ko chata laga diya. aur bolte hum bus se nikhli ki buddhe ko sarm nahi aati.

satyendra said...

बुड्ढों से लडकियां ही नही लड़के भी त्रस्त रहते हैं , ज्ञानवर्धक लेख है लगे रहिए , जागरुकता बढ़ेगी तभी इस समस्या से निजात मिलेगा