Friday, September 7, 2007

प्रकृित को बचाने पर भी सोचो लोगों

ओम कबीर

अभी हाल ही में यह खबर आई िक भारतीयों में बढ़ रही अमीरी की मुख्य वजह हमारी बचत करने की आदत के कारण है. हम बचत कर रहे हैं
और अमीर होते जा रहे हैं. इसमें तो हमारा कोई जवाब नहीं है. वैसे पैसे के मामले में भारतीयों का कोई जवाब नहीं है. मनी मैनेजमेंट हमें खूब आता है. लेिकन सवाल यह है िक जब हम पैसे बचाकर दुिनया के अमीरों में अपना स्थान बना सकते हैं तो िफर हम अपने प्राकृितक संसाधनों के क्यों नहीं बचा सकते हैं. यह भी हमें पता है िक हमप्राकृितक संसाधनों के मामलों में काफी धनी हैं. तो क्या हम इस मामले में भी हम सबसे अमीर नहीं हो सकते. आज ग्लोबल वािमॆंग के खतरों का सामना कर रहे हैं. यह हमारे िलए खतरे की घंटी वन चुकी है. चारो ओर इसका हो हल्ला हो रहा है. लेिकन हम चैन से सोए हैं. हमें कोई िफक्र नहीं है. हम इंतजार कर रहे हैं िकसी बड़ी िवपदा का.सब कुछ बबाॆद हो जाएगा तब हम चेतेंगे. तब तक तो काफी देर हो चुकी होगी. हमारी न िदयां प्रदूिषत हो चुकी हैं. िफर भी हमें कोई िफक्र नहीं है. पानी के िलए हाहाकार मचा हुआ है. कहीं बाढ़ तबाही मचा रही है. िफर भी हम प्रकृित को अनदेखा कर रहे हैं. संसाधनों की बचत में इतनी कंजूषी क्यों. हम क्यों नहीं चाहते िक हमारी नदियां साफ सुथरी रहे. मौसम अपने अनुकूल रहे.
देश में हजारों लोग हर साल प्रकृित का कोप बन रहे हैं. इसमें हमारी ही लापरवाही है. हमारे ही बनाई हुई समस्याएं हैं ये. अगर हम चाहें तो अपने वातावरण को स्वच्छ रख सकते हैं. िबल्कुल अपने घर की तरह. लेिकन अपना घर साफ और गली कुड़े से भरी हुई. हम इसी में अपना स्वािभमान समझ रहे हैं. इसी को हम िबकास कह रहे हैं. हम घर को साफ रखने के िलए अपने आसपास के वातावरण की कुबाॆनी दे रहे हैं. अपने बहुमुल्य जल संपदा की कुवाॆनी दे रहे हैं.

2 comments:

Satyendra PS said...

सही कहा आपने,
पकृति को बचाने की पूरी कोशिश होनी चाहिए । वैसे हम प्रकृति को उसके हाल पर छोड़ दें तो वह अपना संतुलन बनाए रखेगी । हमेे केवल इतना ही करना है िक उसे नष्ट करने की कोिशश न करें ।

satyendra said...

कोशिश ये होनी चाहिए कि पुरखों ने जो कुछ भी हमें िदया है उसे आने वाली पीढ़ी को उससे कुछ बेहतर बनाकर सौंपें । प्राकृतिक संसाधनों को हम अपने नििहत स्वार्थों के िलए नष्ठ कर रहे हैं।